दंभ
दंभ
उड़ने वाला दंभ की मदहोशी में,
जा गिरता है अंधकार के कुएँ में,
चूर-चू हो जाता है अभिमान,
परन्तु हो चुकी होती है देर तब तक।।
महाज्ञानी, प्रखार पंडित,ऐश्वर्य से परिपूर्ण,
सोने की लंका का स्वामी अतुल्बलशाली रावण,
नशे में चूर अहंकार के भूला सत्य और धर्म,
लायाा हर सीता को जान अकेली,
रख दिया सीता को दशानन ने अशोक वाटिका में।
बल, बुद्धि विद्या के सागर राम दूत हनुमान,
ने किया प्रवेश लंका में कर वध लंकनी का,
कर खोज सीता की पहुँचे अशोक वटिका,
उजाड़ डाला विशिष्ट बाग फलों का लंका के,
किया वध दशानन पुत्र अक्षय कुमार का,
सह न सका रावण प्रहार अभिमान पर,
लगवाई आग पूँछ में हनुमान के,
जला डाली स्वर्ण नगरी राम दूत हनुमान ने,
कर भस्म दंभ भी लंकापति का चल दिये रमदूत।
अन्ततोगत्वा तीर से राम की गिर पड़ा धरती पर,
महाप्रतापी लंका का स्वामी दशानन रावण भी।
विनम्रता भर उजियाला जीवन में मानव के,
करती है सदा विजय पथ पर अग्रसर।
दंभ ने भर अंधियारा जीवन में मनुष्य के,
गिराया है उसे मुँह के बल हर युग हर काल में ।।
