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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Classics

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Classics

संयुक्त परिवार

संयुक्त परिवार

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छोटों को प्यार बड़ों का सम्मान, संयुक्त परिवार की पहिचान।

एक-दूजे की खुशी, संतोष, श्रद्धाभाव मन के अरमान। 


बुजुर्गों के अनुभव,पड़ोसी की सीख,देवर भाभी की होली।

देवरानी जेठानी की तनातनी, नंद भाभी की ठिठोली।


भाई-बहन के रिश्तो में था एक गहरे मीठे अपनत्व का लगाव।

मिलती डांट फटकार,अनुभव की लीक, कभी बट सी छांव।


तुलसी बिरवा से महकता आंगन गौरैया का ठांव था।

कुटिलता,कलुषिता,एकाकीपन,ईर्ष्या, द्वेष का न चाव था।


हर घर में कुत्ते गाय की रोटी साधु-संत का सीधा होता था।

अतिथि का था सम्मान,कोई जन खाली पेट न सोता था।


तीज त्यौहार की हर खुशी में नाच गाना संग ढोलक बजती थी।

दादी पोती को लाड़ लड़ा,सिर में हाथ से तेलचंपी करती थी।


रिश्तो की डोर होती बड़ी नाजुक,हौले से सुलझा जाना।

कभी खींच कभी तान,कभी खुद थोड़ा झुक बढ़ जाना।


फूल-फूल चुन करके गूंथा जाता भगवन के फूलों का हार।

रिश्तो की नाजुक डोरी से बंधकर बनते संयुक्त परिवार। 


दादी, परदादी का संसार था जीवन एक दूजे पर निसार था।

कुत्ते गाय भैंस बकरी से भी लोगों को अपनों सा प्यार था।


पनघट में एक दूसरे से मिलने का कैसा रहता इंतजार था।

गांव की गली ही बच्चों का खेलमैदान व बूढ़ों का जहान था।


परदादी की लम्बी उम्र,उत्तम स्वास्थ्य,से न कोई अंजान था।

जीवन कितना सरल सहज चेतनरूप ही भगवान था।


दादी-बाबा,चाचा,बुआ,ताऊ, नाती-पोते परिवार की मिसाल थे।

बड़े ही भाग्यशाली खुशहाल होते, ऐसे परिवार बेमिसाल थे।


बाबा इस घर की नींव तो दादी भरे-पूरे वृक्ष की जड़ होती।

पापा घर की छत तो माँ साक्षात लक्ष्मी रूपा अन्नपूर्णा होती।


अनेकता में एकता के रंग बिखेर सरस पुष्पित पल्लवित होते।

कभी हंसते-मुस्कारते,लड़ते-झगड़ते दिन रूठते मनाते बीतते।


परिवार के रिश्ते हाथ की उंगलियों सम छोटे-बड़े होते।

खुशी व गम मिल बांटते सुखद दिन-रैन नाजुक अनमोल होते।


प्रकृति थी भगवान, पंच तत्वों का जीवन में पूरा मान सम्मान था

वातावरण शांत प्रदूषण मुक्त पारिवारिक संस्कार व ईमान था।


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