#गणेश को प्रथम पूज्य का वरदान
#गणेश को प्रथम पूज्य का वरदान
जया विजया संग अठखेलियां करती मां गौरा पार्वती ,
माता क्यों नहीं कोई नहीं निज गण इतने बड़े कैलाश में ,
दे दिया तुरंत आदेश मां ने बुला नंदी सम शिव प्रिय गणों को ,
हर पल द्वार पर देना होगा पहरा न आए कोई कहीं से भी वो ,
चली गई माता ये कहकर सखियां संग स्नान को ,
आ गए शिव कैलाशी इतने में ,ले हाथ में त्रिशूल को,
अंदर जाने दो कह ......चले शम्भू ,न सुनी नंदी के वचन ,
तब पार्वती ने अपने उबटन मेल से बना दिया पुतला ,
अभिमंत्रित जल छिड़ककर नामकरण किया गणेश ,
लड्डू प्रिय सुत ने करी हर आज्ञा जननी की शिरोधार्य ,
आ गए द्वार पर पिता शंकर ,पहचान न पाए दोनों ,
क्रोधित शिव शंकर ने सुत का किया सिर धड़ से अलग ,
सुनी माता हुई क्रोधित,कांप उठा तीनों लोक ,
हुआ फिर निर्णय पहला जीव जो मिले लगे उसका शीश ,
उत्तर दिशा में मिला गज, सिर सुशोभित , नाम हुआ गजानन ,
संग मूषक के बैठ कर ली मात पिता की तीन परिक्रमा ,
कर दिया दीप प्रज्ज्वलित खड़े जोड़ दोनों हाथ ,
थक हार कर जब पंहुचे सभी देव गण कैलाश ,
बुद्धि विवेक से जो काम ले वही कहलाए बड़ा ,
बाल गणेश की बुद्धि पर हुए सब देव एक मत ,
सर्वसम्मति से सब देवों ने दिया प्रसन्न हो आशीर्वाद ,
प्रथम पूज्य गणेश जी तभी हो हर कार्य सफल ,
बुद्धि दाता,गजानन,,गणपति,विध्नहर्ता ,लंबोधर
हर रूप में करें मोहिनी वंदन स्तुति श्री गणेश की !
