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Mohini Gupta

Classics

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Mohini Gupta

Classics

#गणेश को प्रथम पूज्य का वरदान

#गणेश को प्रथम पूज्य का वरदान

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जया विजया संग अठखेलियां करती मां गौरा पार्वती ,

माता क्यों नहीं कोई नहीं निज गण इतने बड़े कैलाश में ,

दे दिया तुरंत आदेश मां ने बुला नंदी सम शिव प्रिय गणों को ,

हर पल द्वार पर देना होगा पहरा न आए कोई कहीं से भी वो ,

चली गई माता ये कहकर सखियां संग स्नान को ,

आ गए शिव कैलाशी इतने में ,ले हाथ में त्रिशूल को,

अंदर जाने दो कह ......चले शम्भू ,न सुनी नंदी के वचन ,

तब पार्वती ने अपने उबटन मेल से बना दिया पुतला ,

अभिमंत्रित जल छिड़ककर नामकरण किया गणेश ,

लड्डू प्रिय सुत ने करी हर आज्ञा जननी की शिरोधार्य ,

आ गए द्वार पर पिता शंकर ,पहचान न पाए दोनों ,

क्रोधित शिव शंकर ने सुत का किया सिर धड़ से अलग ,

सुनी माता हुई क्रोधित,कांप उठा तीनों लोक ,

 हुआ फिर निर्णय पहला जीव जो मिले लगे उसका शीश ,

उत्तर दिशा में मिला गज, सिर सुशोभित , नाम हुआ गजानन ,

संग मूषक के बैठ कर ली मात पिता की तीन परिक्रमा ,

कर दिया दीप प्रज्ज्वलित खड़े जोड़ दोनों हाथ ,

थक हार कर जब पंहुचे सभी देव गण कैलाश ,

बुद्धि विवेक से जो काम ले वही कहलाए बड़ा ,

बाल गणेश की बुद्धि पर हुए सब देव एक मत ,

सर्वसम्मति से सब देवों ने दिया प्रसन्न हो आशीर्वाद ,

प्रथम पूज्य गणेश जी तभी हो हर कार्य सफल ,

बुद्धि दाता,गजानन,,गणपति,विध्नहर्ता ,लंबोधर 

हर रूप में करें मोहिनी वंदन स्तुति श्री गणेश की !


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