समय अनमोल तोहफ़ा …
समय अनमोल तोहफ़ा …
दुनिया की दौड़ देखी
भागते गिरते संभलते लोगो की क़तार देखी ……
बड़ी हैरान रहती थी मैं …
पता नहीं क्यों सब यूँ चलते हैं
किसी भी चीज़ को पाने को यूँ मचलते हैं …..
एक चेहरा एक अस्तित्व ले कर आये हैं यहाँ ……
ये क्या कम है ……
जो उस विधाता के हाथों सजे
सँवरे और भरमाये हैं यहाँ …
दुनिया का ये खूबसूरत नज़ारा
दिखाया है उसने ….
हर एक इंसान को …
प्यार के उपहार से सज़ा के ज़मीन पे उतार कर ……
अपना फ़र्ज़ निभाया है उस ने
मान कर उस का एहसान ..
क्यूँ नहीं ख़ुशी से लोग ..जीते है
यूँ ही भटक भटक …
के हर पल गँवा देते हैं …
मैंने भी सोचा ….यशवी ….
एक अपना क़र्ज़ अदा कर जाऊँ
उस का एक अनमोल तोहफ़ा समय …..
जिसे देख के भी अनजान हैं लोग
यूँ इस तरह समझा जाऊँ …..
अपने ऊपर उस के एहसान का
थोड़ा सा मोल चुका जाऊँ…..
कितना अनमोल ….
तोहफ़ा दिया है ……समय का
जिस की कोइ क़ीमत नहीं रखी उस ने
लोगो को समझा जाऊँ…हाँ इतना फ़र्ज़ निभा जाऊँ
ना किसी ग़रीब को थोड़ा ..
ना किसी अमीर को ज़्यादा ..
दिया उसने ….
पकड़ थी मज़बूत जिसकी
अपने ऊपर खर्च गया वो यूँ इसे ….
समय चक्र के साथ चल कर
ख़ुशनुमा ज़िंदगी को जी गया
कद्र उस के दिये वक़्त की यूँ निर्वाह कर गया
बस वो ही उस ऊपर वाले की नज़र में रह गया …
अपने कर्मों से उसकी रहमत को यूँ पा गया …..
कभी ना मिटा अस्तित्व उसका ..
यूँ वो इस धरा पे सदा के लिये महान बना …..
जिस ने भी सँभाला उसे …
बस वो ही उस की सब से
सुंदर रचना का किरदार बना
समय अनमोल है ……सब को समझा गया
इंसान बन के आया था ….
यूँ एक शख़्सियत बन के समा गया …
