ये शाम ज़िन्दगी की
ये शाम ज़िन्दगी की
चलते चलते यूँ ही ज़िन्दगी की शाम हुई
दिल में चाह थी
खूब दीयों को जलाऊँगी मैं
उस रोशनी में छिपे रंगों से
अपनी छोटी सी दुनिया को जगमगाऊँगी मैं
ना जाने कब हर तमन्ना यूं ही तमाम हुई
यूँ ही चलती रही मैं
और ज़िन्दगी की शाम हुई
ठहरने का मन भी हुआ था कहीं
पर रुकी ना मैं एक आस ले के
पहुँचूँगी जब मंज़िल पे
अपना एक छोटा सा घर होगा
देख के नज़ारा सुंदर इस जहाँ का
अपने घर का नज़ारा भी लाजवाब होगा
एक छोटा सा घर मेरा भी होगा
टिमटमाते दीयों का उजाला होगा
बस वहीं जा कर अपने रब को भी बुलाऊँगी
सजाऊँगी उस घर को …
सब दिल में रह गया
एक अँधेरा ऐसा छाया
देखने की चाह अपने सभी अपनों की
धुँधलके में छुपा गया
शाम हो गई ज़िन्दगी की
सब को छोड़ जाने का वक़्त हो गया
हाँ बस एक मौका दे गया मेरा रब
सब को यूँ समझाने का
वक़्त ना रुका कभी
ना ठहरने देगा हमें कहीं
जो मिला नज़ारा उसको दिल में बसा लेना
सोचने का ठहरने का नाम लेना
ये काम तो मेरा है
मुझ पे ही छोड़ देना
मैं तो एक पहिया हूँ …वक़्त
घूम रहा हूँ यूँ ही
मुझे बदनाम ना करना
मेरे साथ साथ चलना
कभी आराम ना करना
कभी शाम ना हो जाए ज़िन्दगी की
कहीं शाम ना हो जाए …
