प्यार और पैसा …
प्यार और पैसा …
प्यार और पैसा
प्यार ले के सम्भाल लेने
का हुनर है जिसे
बस वो ही एक धनवान है
पैसे से बढ़ कर प्यार है
जो समझ सका
बस वो ही तो इंसान है
पैसे से धनवान हुआ ना कोई
ताक़त भले ही उसमें इतनी है
ख़रीद लेता है
ये माँ के जन्मे बच्चे को
ख़रीद लेता है ये
हर यादों के लम्हों को
गर्व करता है
इठलाता है
जब अपनी ख़रीद दारी पे
एक शैतान बन जाता है ये
अपनी ही बर्बादी पे तब
ख़ुद ही अभिमान कर जाता है
सब से बड़ी भूल है उसकी
वो जान नहीं पाया
समझ न्ही पाता है
उस विधाता की लिखी लिखावट को
जो बिक गया …वो इंसान नहीं
जिसे ख़रीद लिया …वो शैतान है
वो प्यार नहीं एक
ये तो एक ऐसा जाल था
उस के किए कर्मों का
उस रब का भेजा जाल था
पैसा तो बस माया थी
कर्मों के भुगतान की छाया थी
हाँ अंधेरा हो गया
दुनिया से जाने का तेरा
वक़्त पूरा होने का ये एक इशारा हो गया
धनवान नहीं तू कंगाल है
कुछ ले के जा ना पाया तू
हाँ तू सब से ज़्यादा मजबूर
एक बेजान है
तू इंसान कहाँ शैतान है
प्यार को पाया ,बाँटा जिसने
बस वो विधाता का बनाया इंसान है
