ओ श्याम मोहे रंग दे
ओ श्याम मोहे रंग दे
हो गई आज मैं तो बड़ी ही व्याकुल, ओ श्याम मोहे रंग दे,
डाल दे रंग फाग के मुझ पर, आज तू मेरा अंग भीगो दे।
कब से बैठी हूँ नैन बिछा कर, कान्हा आएगा इस बरसाने,
आएगा कान्हा रंग गुलाल लगाने, मुझ संग प्रीत निभाने।
रामधेनु के सप्तरंग लगाकर, मेरे इस तन मन को रंग दे,
तक रही कान्हा तुम को द्वार पे बैठ, आ, मोहे तू रंग दे।
सारी सखियाँ खेले है फाग पिया संग, मैं बैठी हूँ अकेली,
कान्हा पिया आया ना अब तक, किस संग खेलूं मैं होली।
अब तो मनवा ना लागे हे कान्हा, क्यूँ कर रहा तू देर है,
म्हारे प्यार को यूँ न तड़पा तू, ये किस जनम का बैर है।
आजा कान्हा अब तो म्हारे अंगना, हुई जा रही मैं पागल,
मोहे ग़ुलाल लगा रंग दे आज, देखेगी ये गोपियाँ सकल।
कान्हा संग रंग खेलन आज, गोकुल हुआ जा रहा आकुल,
आयो नहीं कान्हा अब तक, गोपियाँ हो रही बड़ी व्याकुल।
लाल, पीले, नीले, जामुनी, केसरिया, बिखर रिया रंग कई हजार,
राधा संग गोपियाँ हो रही कान्हा, तोरे लिए भोत बेक़रार।
सखियों संग कर रही प्रतीक्षा, देखो मैं राधा पावन प्यारी,
आयो नहीं कान्हा अब तक बरसाने, दिल मा हुई बेकरारी।
याद कर रही राधा कान्हा को, उमड़ रहा है दिल में प्यार,
गोपियाँ भी हो रही अकुलित, सता रहा कान्हा का इंतजार।
रंगों की पोटलियां भी हो रही, हवा में मिलने को आतुर,
तक रहा बरसाना देखो, करने कान्हा का चश्मे बददूर।
सखियों संग बाट जोह रही राधा, हाथों में सने रंग ग़ुलाल,
“क्यों नहीं आया मेरा कान्हा, अब तो आ जाओ नन्दलाल”।
“कैसे खेलूंगी रंग मैं कान्हा बिन”, सोच राधा हुई विह्वल,
“अब तो आ जाओ कान्हा प्यारे, खो रही मैं अपना मनोबल”,
देखो आया कान्हा सज धज कर, गोपियाँ हो गयी निहाल,
उछल पड़ी प्यारी राधा रानी, गाल हो गए सुर्ख और लाल।
अबकी मचेगा बरसाने में, होली के रंगों का मस्त धमाल,
राधा रंगेगी कान्हा के रंग में, गोपियाँ उड़ाएंगी रंग ग़ुलाल।
अलग ही होंगी अबके बरस होली, खेलेंगे सब प्रीत भरी होली,
रामधेनु के रंगों से, कृष्ण राधा खेलेंगे गोपियों संग होली।