अदृश्य शक्ति
अदृश्य शक्ति
भरे होगें रंग किसने अद्वितीय पंखों पर तितलियों के?
नन्हें से बीज में विंशाल वृक्ष के गुणों को समा दिया किसने?
किया निर्माण किसने असंख्य विभिन्न प्राणियों का?
उठते हैं ऐसे अनगिनित प्रश्न मस्तिष्क में,
न कर पाये शान्त जिज्ञासा दार्शनिक,
दिये वैज्ञानिकों ने उत्तर परन्तु न कर पाये पूर्ण सन्तुष्ट,
अन्त में ली शरण अदृश्य शक्ति की,
तभी हो पाई शान्त उगलती हुई प्रश्नों की ज्वाला।
दौड़ती हैं दृष्टि जहाँ तक ब्रह्माण्ड में,
होता है दृष्टिगोचर जीव प्रत्येक अनोखा,
जीव ही क्यों नदियाँ, पहाड़, समुद्र बाँध अपने मोहजाल में,
देते हैं कर प्रज्वलित अग्नि जिज्ञासा की,
विभिन्न जातियां, प्रजातियाँ वनस्पति जगत की,
डाल देतीं हैं विस्मय में, देखते ही बनती है सुन्दरता किसी की,
तो हैं स्वादिष्ट व पुष्टीकारक फल अनेक,
देते शक्ति जीने की जीवन विभिन्न अनाज, सब्जियां आदि,
भरता है कौन जीवनदायनी शक्ति नन्हे-नन्हे दानों में अनाज के?
विस्मित मन व मस्तिष्क हार सब तर्कों से, झुका सिर जोड़ हाथ खड़ा है अदृश्य शक्ति के आगे।
पग पग पर करती मार्ग दर्शन शक्ति कोई अदृश्य,
सिखलाती सही ग़लत का भेद,
होता नहीं दृष्टिगोचर, ना ही कर सकते श्रवण आदेश उसके,
फिर भी होती है अनुभूति हर पल हर क्षण उस सर्वशक्तिमान की,
हूँ नतमस्तक उस अदृश्य शक्ति के आगे, की रचना जिसने इस अदभुत संसार की।।
