STORYMIRROR

Damyanti Bhatt

Classics Others

4  

Damyanti Bhatt

Classics Others

मिट्टी

मिट्टी

1 min
519

मिट्टी मैं कितने सारे रंग छुपे होते

जितने भी रंग हैं

सब मिट्टी से आये हैं

मिट्टी कितना सहती

मिट्टी कभी मिटती नहीं


मिट्टी घर है जल का

पत्थर भी तो मिट्टी बन जाते

आसमान से बरसा इतना सारा पानी

मिट्टी के आंचल मैं सोया रहता


आसमान जैसे रंग बदलता

उसी तरह मिट्टी भी रंग बदलती

जब मैं छोटी थी

मैं तो मिट्टी खाती थी

मीठी मिट्टी


तब मां कहती मूरख

मिट्टी नहीं खाते

पेट मैं झाडियां उग आयेंगी

हजारों कीडे पड जायेंगे


मैं मान गयी

मिट्टी मां है

मिट्टी भी सहती रंजो गम

सहती बोझ उठाती

चोट खाती कांपती  

मां कहती तभी तो भूचाल आता


मां कहती

जब दो सगे लडते इस मिट्टी के कारन

मिट्टी कहती बावलो

सबको मैंनै खाया

मुझको किसने खाया


जो भी हो

मेरा तो नीला आकाश मेरे बाबा

धरती मेरी मां है


जितनी मां के दिल की धडकन 

उतनी मिट्टी की आवाजें

मैं दस तक गिनती गिनूं

सब चुप

मैं छुप जाऊं


ये मिट्टी मुझे

मां का आंगन याद दिलाती है

मैं बाबा के आंगन की चिडिया 

मटखाने की सोंधी मिट्टी हूं


मैं पूजा का शंख हूं

देहरी की रंगोली

मां की ओढनी मैं

हंसता हुआ दीप हूं।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics