मिट्टी
मिट्टी
मिट्टी मैं कितने सारे रंग छुपे होते
जितने भी रंग हैं
सब मिट्टी से आये हैं
मिट्टी कितना सहती
मिट्टी कभी मिटती नहीं
मिट्टी घर है जल का
पत्थर भी तो मिट्टी बन जाते
आसमान से बरसा इतना सारा पानी
मिट्टी के आंचल मैं सोया रहता
आसमान जैसे रंग बदलता
उसी तरह मिट्टी भी रंग बदलती
जब मैं छोटी थी
मैं तो मिट्टी खाती थी
मीठी मिट्टी
तब मां कहती मूरख
मिट्टी नहीं खाते
पेट मैं झाडियां उग आयेंगी
हजारों कीडे पड जायेंगे
मैं मान गयी
मिट्टी मां है
मिट्टी भी सहती रंजो गम
सहती बोझ उठाती
चोट खाती कांपती
मां कहती तभी तो भूचाल आता
मां कहती
जब दो सगे लडते इस मिट्टी के कारन
मिट्टी कहती बावलो
सबको मैंनै खाया
मुझको किसने खाया
जो भी हो
मेरा तो नीला आकाश मेरे बाबा
धरती मेरी मां है
जितनी मां के दिल की धडकन
उतनी मिट्टी की आवाजें
मैं दस तक गिनती गिनूं
सब चुप
मैं छुप जाऊं
ये मिट्टी मुझे
मां का आंगन याद दिलाती है
मैं बाबा के आंगन की चिडिया
मटखाने की सोंधी मिट्टी हूं
मैं पूजा का शंख हूं
देहरी की रंगोली
मां की ओढनी मैं
हंसता हुआ दीप हूं।
