रामायण ५३;राम रावण युद्ध
रामायण ५३;राम रावण युद्ध
रथ में रावण था अगले दिन
तेज चले जो पवन समान
कहे तुम सब वानरों को मारो
भाईओं के मैं लूँगा प्राण।
विभीषण देखा, राम पैदल हैं
कहें नाथ, रथ है न पास
ना कवच है, ना जूते हैं
जीतेंगे, कैसे करूं विश्वास।
कृपानिधान बोले, हे सखे
रथ वो और है, जय हो जिससे
सत्य शील, ध्वजा और पताका
शौर्य, धैर्य पहिये हैं उसके।
ऐसा धर्ममय रथ जिसका हो
वो तो जग जीत ले सारा
रावण की तो बात ही क्या है
जीवन मृत्यु भी, उससे हारा।
दसों धनुषों पर रावण ने
बाण किये संधान और छोड़े
वानर सेना विचलित हो गयी
लक्ष्मण उसकी तरफ थे दौड़े।
कहें रावण, तू मारे वानर
देख यहाँ मैं काल तेरा हूँ
रावण कहे तूने पुत्र मारे
मैं तुझ को ही ढूंढ रहा हूँ।
भयंकर युद्ध हुआ दोनों में
ब्रह्मा शक्ति लक्ष्मण पर मारी
व्याकुल हैकर गिर पड़े लक्ष्मण
रावण उठाएं पर वो थे भारी।
उठा न सका जब रावण लक्ष्मण को
हनुमान उठा ले गए उनको
रावण को आश्चर्य बहुत हुआ
फिर समझा लिया अपने मन को।
थोड़ी देर में लक्ष्मण फिर उठे
रावण पर भारी बाण वो मारें
मूर्छित होकर रावण गिर पड़ा
सारथि ले गया उसको लंका में।
मूर्छा टूटी थी रावण की
करने लगा वो यज्ञ वहां पर
विध्वंश करें यज्ञ रावण का
विभीषण राम से कहें विनती कर।
वानर जाकर लंका में कहें
औ निर्लज्ज, तू कहाँ बैठा है
अब तू आजा रणभूमि में
शक्ति पर अपनी तू ऐंठा है।
अंगद मारी लात रावण को
पर कोई फर्क न पड़ा था उसको
वानर दाँतों से काटें और
लातों से मारें थे उसको।
रावण तब क्रोधित बड़ा हुआ
मारे जो भी आगे आये
इसी बीच वानरों ने मिलकर
यज्ञ विध्वंश किया, भाग वो जाएं।
उधर देवता कहें राम से
मारो जल्दी दुष्ट रावण को
रावण सेना लेकर आया
सोचे मारेगा अब भगवान को।
राम के हाथ में श्रारङ्ग धनुष है
राम रचें अपनी ही माया
देवता देखें रथ नहीं पास में
इंद्र का था रथ भिजवाया।
रामचंद्र जी चढ़ गए ऊपर
माया से रावण ने भरमाया
वानरों को सब और दिख रहा
राम और लक्ष्मण का ही साया।
व्याकुल हो गयी सेना सारी
राम ने काटी सब माया वो
वानर सब हुए थे हर्षित
द्वन्द युद्ध के लिए चले वो।
दुर्वचन सुन रावण के, राम कहें
पुरुष हैं होते तीन प्रकार के
गुलाब, आम और कटहल जैसे
कहूं मैं ज्ञान से सोच विचार के।
गुलाब सिर्फ फूल है देता
आम फूल और फल दोनों दे
कटहल सिर्फ फल ही देता है
मनुष्य कर्म भी इसी तरह करे।
कुछ पुरुष कहतें हैं, करें नहीं
दुसरे कहते, करते भी हैं
तीसरे पुरुष केवल करते हैं
पर वो कुछ कहते नहीं हैं।
रावण क्रुद्ध, छोड़े बाणों को
रामचंद्र का गिरा सारथी
राम ने बाण से दसों सिर काटे
बीस भुजाएं उसकी काट दीं।
जो सर काटें वो उग आएं
ढेर लगा गया, वहां सर ही सर
रावण छोड़ी शक्ति विभीषण पर
राम ने सह ली अपने ऊपर।
राम को थोड़ी मूर्छा आ गयी
विभीषण को तब क्रोध आ गया
गदा मारी रावण की छाती पर
आँखों आगे अँधेरा छा गया।
मल्ल्युद्ध दोनों करने लगे
तभी वहां हनुमान आ गए
पर्वत से उसका रथ तोडा
लात मारी सीने में उसके।
विभीषण राम के पास चले गए
रावण ने रची फिर माया
असंख्य रूप बना लिए अपने
वानर सेना को डराया।
राम ने बाण एक मार कर
काट दी उसकी सारी माया
रावण आकाश में उड़ने को हुआ
लात पकड़ अंगद ने घुमाया।
नल नील चढ़ गए सिरों पर
नखों से उसके ललाट को फाड़ें
रावण हाथ से पकड़ लिया उन्हें
छूट के वो फिर वहीँ दहाड़ें।
रावण चलाये बाण फिर ऐसे
मूर्छित कर दिए योद्धा सारे
जाम्ब्बान आये वहां तब
उसकी छाती में लात वो मारें।
रावण पृथ्वी पर गिर पड़ा
जाम्ब्बान फिर वहां से जाएं
सारथि ने उठाया रावण को
रथ में डाला, होश में लाएं।
मूर्छा हुई दूर वानरों की
रघुनाथ के पास आ गए
उधर राक्षस भयभीत हुए
जब मूर्छित रावण उनके पास गए।
उधर त्रिजटा बताये सीता को
राम काटे रावण के सर को
सुनके वो दोबारा उग आएं
भय ह्रदय में हुआ सीता को।
विलाप करें पूछें त्रिजटा से
माता, दुष्ट मरे ये कैसे
त्रिजटा बोली, हे राजकुमारी
बताऊँ मैं, मरे ये जैसे।
ह्रदय में बाण लगे जब उसके
तब जायेंगे उसके प्राण
पर ह्रदय में उसके जानकी
नहीं मारें प्रभु इसी लिए बाण।
बार बार सर काटने से जब
व्याकुल बहुत ही हो जाये वो
ध्यान तुमसे उस का हट जाये
तब मारें राम फिर उसको।
चली गयी त्रिजटा अपने घर
जानकी जी विरह में दुखी थीं
प्रभु जल्दी आप अब आओ
यही उन्होंने विनती की थी।
रावण जब मूर्छा से जागा
क्रोधित हो बोले सारथि से
रणभूमि से क्यों ले आये
चला गया फिर युद्धभूमि में।
वानरों ने उसे घेर लिया वहां
नखों से उसको वो सब मारें
रावण ने माया फैलाई
भूत पिशाच प्रकट हुए सारे।
वीर अचेत हुए वानरों के
फिर रची एक दूसरी माया
बहुत सरे हनुमान प्रकट किये
सब को राम के पास ले आया।
एक बाण में माया हर ली
राम उससे सब खेल करें हैं
जो सर काटें, फिर उग आएं
पर मुनि, देवता बहुत डरें हैं।
राम देखें विभीषण की और
वो उनको ये राज बताएं
नाभिकुंड में अमृत रावण के
उसके कारण ना मर पाए।
राम लिए थे बाण हाथ में
धनुष पर संधान करें उन्हें
बाण वो पूरे इक्कीस थे
रावण के ऊपर फिर छोड़ें उन्हें।
एक बाण ने अमृत सोखा
बाकी सर, भुजाएं ले चले
धड़ उसका पृथ्वी पर नाचे
प्रभु उसके भी दो टुकड़े करें।
मंदोदरी पास रख सर, भुजाओं को
बाण वापिस चले राम के पास
तेज समा गया राम में उसका
देवता करें हर्ष उल्लास।
वानर भालू भी खुश हुए
बोलें रामचंद्र की जय
राम बोले हुई विजय हमारी
उन सब का मिट गया था भय।
सर देख मंदोदरी व्याकुल हुई
पृथ्वी पर वो गिर पड़ीं
रो रहीं रावण को याद कर
बखान रावण का कर रहीं।
तुम्हारे बल से पृथ्वी कांपे
सूर्य चन्द्रमा तेजहीन थे
टिक न सका कुबेर सामने
जीत लिया यमराज भी तुमने।
वही आज शरीर तुम्हारा
पड़ा है जैसे कोई अनाथ हो
प्रभु राम से विमुख होकर कभी
जग में कोई न सनाथ हो।
स्त्रिओं का शोक देख कर
विभीषण उनके पास चले गए
लक्ष्मण ने उन्हें समझाया
फिर वो प्रभु के पास लौट गए।
राम कहें तुम शोक त्याग कर
अंत्येष्टि की करो तैयारी
विभीषण सब विधि पूर्वक करें
उनके मन में अभी शोक था भारी।