जीवन के रंग
जीवन के रंग
जीवन के रंग सब,
रिश्तो से मिलकर ही बन जाते हैं।
ढल जाते हैं सब,
अपने अपनों में,
तभी तो यह रिश्ते कहलाते हैं।
कभी लिए होते हैं प्रीत के रंग,
तो कभी रीत निभाने से बन जाते हैं,
जीवन के रंग सब,
रिश्तो से मिलकर ही बन जाते हैं।
कोई बुआ तो कोई है मौसी,
कोई चाची तो,
ताई माँ की छांव सुनहरी,
मां की ममता और दादी मां की लोरी से,
सब रंग अपनों के ही तो होते हैं,
जो हर मोड़ पर निखर जाते हैं।
सदस्य अनेक होते हैं,
पर परिवार एक कहलाते हैं।
जीवन के रंग सब,
रिश्तो से मिलकर ही बन जाते हैं।
ढल जाते हैं सब अपने अपनों में,
तभी तो यह रिश्ते कहलाते हैं।
कभी हम ननिहाल,
तो कभी हम मामा के घर जाते हैं,
नानी,.मामी और मौसी से,
कितने तरह की खुशियों के,
रंग हम पाते है।
नाना जी का प्यार दुलार,
मामा की मीठी फटकार,
मौसा जी भी सीख सिखाते,
यह रंग सब खुशियों से ही आते हैं,
और सब इन्हीं में घुल मिल जाते हैं।
जीवन के रंग सब,
रिश्तो से मिलकर ही बन जाते हैं।
चुन्नू किसका और मुन्नू किसका,
नहीं समझ में यह आते हैं।
चाचा के सर चढ़ जाते हैं,
मनाने पर भी नीचे उतर कर नहीं आते हैं,
चाचा इनसे खूब लाड लड़ाते,
कभी बड़ा तो इनके संग,
कभी छोटा वह बन जाते हैं।
ताऊ की डांट लगती है,थोड़ी
हर मौसम में खेले हम होरी ।
जीवन के रंग सब,
रिश्तो से मिलकर ही बन जाते हैं।
कभी रंग बना प्रीत का,
कभी मर्यादा का पाठ है सीखा,
सीखा हमने कैसे रिश्ते निभाते हैं,
कैसे सब रिश्तो के संग जी जाते हैं,
बिना रिश्तो के नहीं जीवन में कोई रंग,
हर रिश्ता कहानी कहता है,
अपनी-अपनी ।
कभी बेटा कहीं बेटी है,संग,
कहीं बुआ तो कहीं मौसी के लाड के है रंग ।
कहीं ताया कहीं पर ताई,
कहीं चाचा और कहीं चाची रंग लाई।
यह रंग सब प्रीत निभा जाते हैं।
जीवन के रंग सब,
रिश्तो से मिलकर ही बन जाते हैं।
रामू काका और देवकी काकी
भी तो हमारे, रिश्तेदार ही कहलाते हैं।
सहारा बन जाते हैं काम का,
और घर में ही हिल मिल जाते हैं।
झिलमिल दीदी तो रसोई संभालती,
कभी रोटी तो कभी दिन भर व्यंजन है बनाती,
छुट्टी आने पर हमारे कभी नहीं,
वह हमें डांटतीं ।
कितना अपनापन यहां है क्योंकि,
रिश्तो का हर रंग यहां जमा है।
कभी गुजिया तो कभी कचोरी,
कभी लस्सी तो कभी शिकंजी,
सब रंग खट्टे मीठे हो जाते हैं,
जीवन के रंग सब,
रिस्तो से मिलकर ही बन जाते हैं।
जीवन के रंग,
शब्दों से मिलकर ही बन जाते हैं।
जीवन के सब रंग,
रिश्तो से मिलकर ही बन जाते हैं।
कभी पतंग तो कभी तिल के लड्डू,
कभी लोहड़ी कभी बैसाखी ।
गणतंत्र मे साथ में मिलकर झंडा फहराते हैं।
फिर आ जाती है शिवरात्रि,
तो फिर हम होली मिलकर मनाते हैं।
इन सभी का संग पाकर,
चली फागुन की फरफराती बयार ।
सब कितने अच्छे और कितने हैं भोले,
खेलकर इन इनके संग,
हरमन है झूमकर डोले ।
कितने पाठ पढ़ा जाते हैं।
जीवन की सीख सिखा जाते है ।
जीवन के रंग सब,
रिश्तो से मिलकर ही बन जाते हैं।
फिर आया रामनवमी का त्योहार,
राम जन्म की सब खुशियां हैं मनाते ।
रक्षाबंधन पर सब मिलकर,
मामा के घर धूम मचाते ।
मामा हमको एकतक है देखते,
नानी के डर से पर,
कुछ कह नहीं पाते।
यही तो सब रिश्तो की डोर है,
नहीं इनका कोई और और छोर है।
रसगुल्ला, जलेबी और सोन पापड़ी,
खा कर सब मीठे हो जाते हैं।
स्वतंत्रता दिवस पर सब,
मम्मी की कैद से छूट जाते हैं जाते,
जीवन के सब रंग,
रिश्तो से मिलकर ही बन जाते हैं।
आते गणेश के हम सब खुशियों में उनकी खो जाते हैं।
रोज लड्डू बूंदी के और मीठे मोदक हम खाते हैं।
अब कहे कनागतो का वक्त,
जहां श्रद्धा से हम नमन करते हैं,
उनकी हम शिक्षा पाते,
जिससे पूर्वजों का आशीष ले पाते हैं।
लो आ गया डांडिया का त्यौहार,
चारों तरफ बस मां की जय जयकार ।
शरद पूर्णिमा को खीर है खाते ।
दशरथ नंदन राम के रावण पर,
विजय पाने पर दशहरा है हम मनाते।
रावण जलाकर बुराइयों की हम आहुति हैं दे जाते,
करवा चौथ के दिन छत पर जाकर,
बार-बार चंदा को देख आते।
अब आई दिवाली,
जगमग दीप वाली ।
यहां दिल नहीं बस दिए ही जले हैं,
और मीठे मीठे पकवान बने हैं।
भाई दूज पर भाई-बहन देते रिश्तो की सौगात,
वादा रीत निभाने का एक दूसरे को दे जाते हैं।
अब आई देव उठनी की बारी,
उठो देव बैठो देव,
सब बार-बार बस यही दोहराते है,
इस बहाने एक बार फिर सब,
यहीं पर है फिर मिल जाते ।
जीवन के सब रंग,
रिश्तो से मिलकर बन जाते हैं।
एक भी रिश्ता टूटे तो,
माला से मोती बिखर जाते हैं।
सब रंग होते हैं,
अनमोल ।
सबका होता है,
खुशियों का मेलजोल।
इसलिए तो सब रंग मन को लुभा जाते हैं।
जीवन के सब रंग,
रिश्तो से मिलकर ही बन जाते हैं।
यह रंग तब दिल को सुहा जाते हैं।
एक दूसरे के साथ मिलकर खेले जाते हैं।
जीवन के सब रंग,
रिश्तो से मिलकर ही बन जाते हैं।
रिश्तों से मिलकर ही बन जाते हैं,
तभी तो यह रंग जीवन के कहलाते हैं।