उलझी सी है ज़िन्दगी मेरी ना कोई कश्ती ना किनारा। उलझी सी है ज़िन्दगी मेरी ना कोई कश्ती ना किनारा।
हर पल में खुशियां देते और फिर कल बनकर आ जाते ! हर पल में खुशियां देते और फिर कल बनकर आ जाते !
गर्मियां भी थी, कितनी रंगों वाली, कहीं हरी, तो कहीं होती थी सुर्ख लाल रंगों वाली,थी! गर्मियां भी थी, कितनी रंगों वाली, कहीं हरी, तो कहीं होती थी सुर्ख लाल रंगों ...
रिश्तों से मिलकर ही बन जाते हैं, तभी तो यह रंग जीवन के कहलाते हैं। रिश्तों से मिलकर ही बन जाते हैं, तभी तो यह रंग जीवन के कहलाते हैं।