कैसे वो दिन होते !
कैसे वो दिन होते !
वह गुज़रा हुआ कल
वो बीते हुए पल
वो गुज़री हुइ बातें
वो वादें वो इरादें
लौट कर कभी आते
और धीरे से मुस्कुराते
दिन धीरे से गुजरता
रात और भी लंबी होती
फिर सारा जहां मिलजाता
हर बंधन भी खुलजाता
और सारे रिस्ते नातें
धीरे धीरे जुड़जाते
मंजिल की खोज न होती
न हारने का गम होता
प्यार की खुशबू आती
हर शाम सुहानी होती ।
हाय! कैसे वो दिन होते
जो अतीत की गोद में शोते
हर पल में खुशियां देते
और फिर कल बनकर आ जाते !
