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Sheetal Raghav

Others

4.5  

Sheetal Raghav

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गर्मियों का धमाल ही धमाल

गर्मियों का धमाल ही धमाल

4 mins
494



याद आती है, 

वह स्कूल वाली गर्मियां, 


मीठी मीठी यादों वाली, 

गर्मियों की रंगीनियों, 


गर्मियां भी थी, कितनी रंगों वाली, 

कहीं हरी, तो कहीं होती थी सुर्ख लाल रंगों वाली,थी, 

वह गर्मियां गुलमोहर के लाल रंग के फूलों वाली।


शाम को आते थे,दीनू काका,

आइसक्रीम भी लाते थे, वह रंगों वाली,

मैंगो ,ऑरेंज और ना जाने कितने स्वाद वाली, काला खट्टा गोला हमें खूब भाता था,


कभी लाते थे काका फालूदा, 

तो कभी कुल्फी मलाई वाली, 


कुल्फी देख अम्मा ने भीतर से आवाज लगाई, लल्ला मोको भी ले लीजो,

कुल्फी फालूदा वाली, 


कभी गोला बर्फ का तो कभी मधुशाला।


पिताजी के लिए गोला वह, 

नींबू वाला बनाता था। 


कभी-कभी स्पेशल पिताजी ब्रांड भी बनाता था,

उसमें दवाई अक्सर वह शिव जी की बूटी वाली मिलाता था।


कभी-कभी हम सब जाते थे, 

मिलकर मधुशाला, 


गन्ना रस सबको बड़ा भाता था, 

लौटते में कोई गाड़ी से तो कोई पैदल था,


आता आते-आते हंसी ठिठोली, 

दस मिनट की राह अब,

आधे घंटे से ज्यादा की हो ली। 


यह सब कितना लुभाता था,


सब के साथ जीने का मजा तो, 

केवल गर्मियों में ही आता था।


अब आई मेहमानों की बारी, 


बुआ आ गई,

ऊचें तेवर वाली, 


बुआ के आते घर में छा गया धमाल है,


रुठा रुठी गुस्सा गुस्सी, 

यह छाया रंग नया आज है। 


दादी मनाती दादा मनाते, 

बुआ किसी से भी ना मानती, 


पिताजी फिर लाते जलेबी, 

तब बुआ मीठी हो जाती।


चाचा चाची ताऊ और ताई,

अब सबके खुश होने की वजह आई, 


मेरी प्यारी मिनी दीदी, 

हॉस्टल से वापस घर आई।



दीदी के आने से घर, 

खेल का बना मैदान है,


एक तरफ अंताक्षरी तो, 

दूसरी तरफ टीवी में क्रिकेट का बना बवाल है। 


हल्ला गुल्ला, धक्कम धक्की,

बस चारों तरफ धमाल ही धमाल है। 


यह सब गर्मियों का ही तो कमाल है। 


कौन कहता है गर्मी उदास है। 


हम सबके लिए तो गर्मियां ही बहुत खास है।


हल्ला गुल्ला, धक्कम धक्की,

बस चारों तरफ धमाल ही धमाल है।


एक तरफ मम्मी की डांट,

तो एक तरफ हम सब भाई बहनों की शैतानी खास है।


इस प्यार भरी नटखट शैतानी में,


छोटी बुआ का भी तो हाथ है। 


चाचा रोज रात में लाते रसगुल्ले, 

रसगुल्ले खाकर हर कोई कहता, 

रसगुल्ले कमाल है। 


हल्ला गुल्ला चोर सिपाही,

कभी-कभी पकड़म पकड़ाई का सवाल है। 


पोशांपा खेलते खेलते 

थक गए, घर के सारे शैतान है,


गर्मियां है कितनी प्यारी, 

सब के प्यार के रंगों वाली।


गर्मियां हर बार होती कमाल है। 

हर गर्मियों में घर में सब के आने से घर मे ,

होता बड़ा धमाल है। 


यह सब गर्मियों का ही तो कमाल है।


अरे मैं तो भूल गया, 


आम भी तो पीछे वाली बगिया में था, 

खूब लगा, 


लटका पेड़ पर उन्हें देख,

मेरे तो मुंह में था, पानी भरा,


मैं और दीदी बुआ और पिंकी चीनी मिनी, 

चाचू और रिंकी,


मार पत्थर आम गिराते थे।,

तब घर के बड़े हम पर कितना चिल्लाते थे। 


अरे अमिया है थोड़ी,

ना मार पत्थर इन्हे गिराओ छोरा - छोरी,


आम सब गिर जाएंगे तो,

अचार कैसे पढ़ पाएंगे। 


ओ री छोरी लाली की, 

तू है बड़ी निगोड़ी।


तोड़ दी तूने सारी अमिया,

अब अचार पड़ेगा थोरो,


रुक बताऊं तोए लाली की बिटिया,

और तुम्हें ओ छोरा छोरी,


अम्मा भीतर से चिल्लाई,

अम्मा बाहर आई,


हम सब ने मिलकर दौड़ लगाई।



इसलिए ही तो गर्मियां हमें बहुत ही भाई ।

और कितनी गर्मियों की में करूं बढ़ाई,


हमारे घर में तो गर्मियां उमड़ घुमड़ कर आई। 


कितने रंग कितनी खुशियां ,

एक साथ लाई देखो देखो।


देखो देखो गर्मियां सबके लिए,

सब के साथ मिलकर, 

मौज मनाने की ऋतु लाई लाई। 


आई देखो भाई मनमोहक गर्मियां है आई।


गद्दे, तकिया सब लेकर दौड़े,

उसके साथ नहीं 

इसके साथ सोने की अब मेरी है,बारी,।


आई छत पर, धमाचौकडी,

इसके साथ उसके साथ सोने की होड़ थी,लगाई 


कभी तकिया तो कभी खींची चटाई, 

सो गया। मुंह फुला कर भाई, 


उसे अकेला कहां छोड़ने वाले थे,

मिलकर उसकी चद्दर और तकिया खींचने वाले थे। 


फिर हो गई हुल्लड़ शुरू, 


फिर हर दिल हर उम्र पर छाया सुरूर,


बड़ी दादी की परियों की कहानी,

एक था राजा एक थी रानी,

दोनों मर गए खत्म कहानी ।


सब बच्चे यही चिल्लाते थे। 

इतने में फूफा जी आकर,

हम बच्चों की डांट लगाते थे।


डर के मारे सब बच्चे बस,

 फिर चुपचाप सो जाते थे ।


यह गर्मियां होती थी 

मतवाली, 

कितनी नटखट रिश्तो वाली ।


गर्मियां होती थी अनमोल,

जिनका नहीं होता था कोई मोल ।


इतने सारे बच्चो में,

सच मानो हमारा घर,

घर कम चिड़ियाघर ज्यादा बन जाता था। 


हर मन में उत्साह था भरा,

सब की हर बात होती थी, निराली।


अब कहो गर्मियां की कितनी प्यारी? 


चीनी - मिनी, बुआ और पिंकी,

चाचू और रिंकी के,

साथ वाली,


गर्मियां होती थी,

जीने की चाह वाली।


गर्मियां रिश्तो के आने की उम्मीद वाली,

गर्मियां कि हम सबके लिए खास,

नहीं होता था, 

कोई भी गर्मियों में उदास।


अब कहो गर्मियां की कितनी प्यारी?



एक रुपए में जाकर हम,

हम सब बुक्स स्टॉल से कॉमिक्स ले आते थे,


अदल बदल कर सब कॉमिक्स को,

हम सब मिलकर चट कर जाते। 


बाबा सबको मिलकर नई-नई ज्ञान की बात सुनाते थे। 


घर में खुशियां बहुत थी एक साथ,

जगह थी थोड़ी सी थोरी,


घर में खुशियां बहुत पर जगह थी थोड़ी, 

अम्मा - बाबा के लाड की छांव घनेरी,

हम सब मिलजुल कर एक साथ,

समय बिताते थे। 


कूलर की टटीया गीली करके,

ठंडी हवा का लुत्फ उठाते थे। 


अब कहां मजा ए सी की हवा में, 

जो था मजा पीछे वाले आंगन की अमवा की छांव में,

कलेऊ, कलेवा और पिछलारी,

हम सब मिलकर वही आंगन में खाते थे। 


सच बताओ कितने मजे आते थे?


जब डांट भी पड़ती, 

तब सब एक दूसरे की तरफ उंगलियां कर जाते थे। 


असली मजे तो सबके साथ,

बस गर्मियों में ही आते थे। 


जब सब मिलकर खाने के साथ-साथ,

डांट भी एक साथ मिलकर खाते थे,

और उधम मचाते थे। 



जीवन के असली मजे तो बस,

गर्मियों में ही आते थे। 


बस गर्मियों में ही आते थे। 


पहले कोई गम,

कभी हमारे घर की तरफ,

आंख उठाकर भी नहीं देख पाता था। 


जो आता था,

छोटा मोटा वहीं बैठ कर, 

सब के साथ दूर हो जाता था। 

बाकी जो बचा जाता था, 

अम्मा की लाठी देख भाग जाता था। 

इसलिए तो हर बार,

गर्मियों का मौसम बड़ा ही सुहाता था।


गर्मियों का मौसम बड़ा ही सुहाता था।



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