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S N Sharma

Abstract Tragedy Classics

4  

S N Sharma

Abstract Tragedy Classics

चलना बस चलते ही जाना

चलना बस चलते ही जाना

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अंतहीन एकांत डगर है न जाने कितनी दूरी है।

चलना बस चलते ही जाना जीवन की मजबूरी है।


हम साथ चले पाने मंजिल बिछड़ गए दोराहे पर।

छूट गए खुशियों के उपवन साथ तेरे चौराहे पर।


सांझ हुई अगम राह पर सीलन फिसलन पूरी है।

चलना बस चलते ही जाना जीवन की मजबूरी है।


यूं तो थक करके रुक जाना मेरी फितरत नहीं रही।

साथ तेरे चल मंजिल पाना मेरी किस्मत नहीं रही।


हम दोनों के बीच बढ़ गई बोलो ये कितनी दूरी है

चलना बस चलते ही जाना जीवन की मजबूरी है।


काश समय तब थम जाता जहां साथ तुम मेरे थे।

खुशियां ही खुशियां थीअपने सपने बड़े सुनहरे थे।


तेरा जाना मजबूरी थी मेरा जाना भी जरूरी है ।

बस चलना चलते ही जाना जीवन की मजबूरी है।


साहित्याला गुण द्या
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