गज़ल
गज़ल
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सुनो वो मखमल-सा आदमी है
शायद कांटों में खिला आदमी है !
मखमल में टाट के है कसीदे
लगता ज़मीन से जुड़ा आदमी है !
हिमालय गवाह हर वक़्त का
वो हर दौर से गुजरा आदमी है !
भीड़ से किसका पता पूछ रहा वो
आज भी कागजों में उलझा आदमी है !
आदमी खुद को ही चुनौती दे रहा
उसूलों की राह जो खड़ा आदमी है !