अर्जुन प्रतिज्ञा
अर्जुन प्रतिज्ञा
सुन पुत्र की मृत्यु सूचना
क्रोधाग्नि अर्जुन की भड़क गई
रग-रग का लहू खोल चुका था
तन-मन, रोमें भी कांप उठी।।
भीषण विध्वंस की मैं प्रतिज्ञा करता
डगमग धरा भी डोल उठी
अंगारे दहकते नेत्र से उसके
जैसे ज्वाला ज्वालामुखी से भड़क उठी।।
साक्षी जिसके जल-थल-नभ तक
अविचल आँसू की धारा बहने लगी
जीव-जंतु हर कण-क्षण सुन ले
तब न इस घटना से किसी की आंख हटी।।
जयद्रथ बना था कारण जिसका
कपटपूर्ण थी नीति रही
योद्धाओं में मेरा अभिमन्यु फसा था
दुष्टता न इसने तब भी तजी।।
तड़पता रहा वो हर पल हर क्षण
क्यूं दया-करुणा सबने तजी
घेर के मारा सबने जिसको
महावीर कहलाया मेरा पुत्र वही।।
क्रूरता का अपनी फल भोगेगा
साक्षी जिसकी सृष्टि बनी
देव-दानव चाहे महाकाल भी आए
तय सूर्यास्त तक उसकी मृत्यु रही।।
अटल प्रतिज्ञा अर्जुन की हैे
देव-दानव-नर सुन ले सभी
आख़िरी दिन होगा कल जयद्रथ का
छिप जाए चाहे आकाश-पाताल में
बचेगा नहीं चाहे हो कहीं।।
तरकश मेरा कस चुका
गांडीव की डोर भी ढीली पड़ी
तीनों भुवनों को जलाने हेतु
कमर मैंने अपनी कसी।।
हवा का कल यहां वेग रुकेगा
मार्ग लहर सागर की बदल चुकी
छिप जाए चाहे सूर्यदेव भी
प्रतिज्ञा जयद्रथ वध की अटल रही।।
प्रखर दंड ये प्रचंड होगा
काल कल्वित जो कर चुकी
मृत्यु से बढ़कर न दंड कोई होता
उसको मिलेगा कल वही।।
रौद्र रूप मेरा कल देखेगा
जिस वीर ने न देखा ऐसा रूप कभी
महाकाल का यहाँ तांडव होगा
मुझे रोकने आए चाहे नर-देव सभी।।
प्रलयार्थ हो कल अग्नि बरसेगी
बांहें भुजंगनी हो फुंकार उठी
होगा अस्त्र-शस्त्र का ऐसा युद्ध भयंकर
नहीं देखेगा फिर कोई कभी।।
रूंध जायेगा आकाश-पाताल भी
ऐसी बाणों की वर्षा न होगी कभी
चलाना पड़े चाहे ब्रह्मास्त्र भी कल
जो चला न युद्ध में अभी कहीं।।
कालाग्नि बन टूट पड़ेंगे
जिनकी प्यास न लहू से बुझी अभी
प्राण हरेंगे चुन-चुनकर वो
जो बचाने आयेगा उसको कभी।।
कट कर गिरेंगे मांस लोथड़े
रक्त की नदियां बहती चली
प्रचंड प्रकाश दिनकर फैलायेंगे
मेरे तेज बाण की धार सभी।।
बचा ले उसको बचा सके जो
निकट सूर्य ढलने तक घड़ी बची
चाहे आशीष-वर सब सुरक्षा कर ले
कुछ जीवन की घड़ियां उसकी शेष बची।।
एक ही रहेगा कल के युद्ध में
जयद्रथ या धनंजय सही
दाह करूंगा इस तन का मैं
मार न सका जो उसको यहीं।।
अग्नि दाह करूं जो कर न सकूंगा
करूं शस्त्रास्त्र का मैं त्याग तभी
धारण करूंगा न जीवन-शस्त्र भी
जो पूरी न प्रतिज्ञा मैंने की।।