मैं क्या कर रही हूं
मैं क्या कर रही हूं
मैं क्या कर रही हूं मैं नहीं जानती।
बस जिंदगी की सुबह शाम गिन रही हूं
मैं क्या करना चाहती हूं मैं नहीं जानती
बस जिंदगी जो दे रही है वह करती जा रही हो
मैं क्या कर रही हूं मैं नहीं जानती बस जिंदगी जीए जा रही हूँ।
जिंदगी तू ही बता क्यों दिया जन्म तूने मुझे ना कुछ लक्ष्य है ना कुछ खोना है ना कुछ पाना है
ना कुछ करना है बस सुबह शाम जीए जा रही हूं
मैं क्या कर रही हूं मैं नहीं जानती बस जीये जा रही हूँ बस जीए जा रही हूं
मैं नहीं जानती बस एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे पर पहुंच चुकी हूं
और अब कहां जाऊं मैं नहीं जानती जानती क्या है मेरी खुशी क्या है मेरा दुख
मैं नहीं जानती दूसरों को क्या कहूं मैं, मैं खुद ही अपने आप को नहीं पहचानती
जो बोलते हैं लोग वह सुन लेती हूं कुछ मन में आया तो कह देती हूं
पर क्या करती हूं मैं मैं खुद ही नहीं जानती है जिंदगी बस जीए जा रही हूं
मैं क्या कर रही हूं तू ही बता दे मुझे, ऐसी जिंदगी का मैं क्या करूं तू ही बता दे मुझे
ऐसी जिंदगी का मैं क्या करूं अब बस एक ही लक्ष्य नजर आता है
मुझे जिसने जन्म दिया अब उसी के पास चले जाना चाहती हूं
मैं क्या करना चाहती हूं अब तू ही बता दे मुझे
तेरी सेवा में ही अब जिंदगी जीना चाहती हूं तेरे चरणों में अब मर जाना चाहती हूं
