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priyanka jaiswal

Tragedy

3  

priyanka jaiswal

Tragedy

घना अंधेरा

घना अंधेरा

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कैसा घना अंधेरा छाया कैसा घना अंधेरा छाया       

दिन है होता रात भी होती लोग भी सोते            

लोग भी उठते पर सुबह-सुबह ना लगती             

कैसा घना अंधेरा छाया कैसा घना अंधेरा छाया।        

घर में है लोगों का मेला फिर भी लोग अकेले हैं         

बड़े बूढ़े और बच्चे आराम कर कर के थक गए हैं       

कब जाएगा घना अंधेरा कब आएगा नया सवेरा       

बस यह सब पूछ रहे हैं।                       

कैसा घना अंधेरा छाया कैसा घना अंधेरा छाया     

सड़कों पर है खाकी वर्दी वालों का मेला            

भूखे प्यासे वे बेचारे अपना कर्तव्य निभा रहे हैं     

कभी प्यार से कभी डांट के लोगों को बस समझा रहे हैं  

कब जाएगा घना अंधेरा कब आएगा नया सवेरा वह भी अब यह पूछ रहे हैं                           

कैसा घना अंधेरा छाया कैसा घना अंधेरा छाया        

घर घर में अब हर एक बच्चा अपनी मां से पूछ रहा है   

कब जाऊंगा स्कूल मां ?                    

कंप्यूटर मोबाइल मैं पढ़ाई करके थक चुका हूं मैं

मां छीनो ना बचपन मेरा मां जाने दो स्कूल मुझे

मां बेचारी यही अब सोच रही है           

कब जाएगा घना अंधेरा कब आएगा नया सवेरा        

कैसा घना अंधेरा छाया कैसा घना अंधेरा छाया       

घर-घर में हर एक बेटा फूट फूट कर रो रहा है        

चीख चीख के बोल रहा है अपने मां-बाप और बड़ों को

अंतिम विदाई भी ना मैं दे पाया

मानवता के संस्कारों का यह संस्कार ना मैं निभा पाया                     

 कैसा घना अंधेरा छाया कैसा घना अंधेरा छाया। 


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