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Anisha Bhattacharya

Drama Inspirational

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Anisha Bhattacharya

Drama Inspirational

ख्वाब

ख्वाब

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ऊंचे-ऊंचे ख्वाबों को टूटे हुए देखा है,

और उन्हीं टूटे हुए ख्वाबों को बोझ बनते भी देखा है।

 सोचा तो था कि कोशिश करती रहूंगी अंतिम फासले तक, 

उम्मीद की किरण दिखी तो नहीं थी, पर उम्मीद करना बंद तो न कर सकी। 


हमें यह तो पता है कि हार मानने वालों की कभी जीत नहीं होती, 

पर ग़ालिबों को कौन समझाए कि जो नहीं डाट सके, उनकी दास्तान है कैसी।

सोचते-सोचते इस दगार आ पहुंची, कि जीतना असम्भव हो,

जिनसे रखी यारियाँ थी, वो भी चल बसे इस कदर कि कभी वापस न आए।


 जब जीत की गुंजर थी सामने, कमी थी बस सच्चों की,

ढूंढ रही थी उस भीड़ में मानो, कोई जानी सी चेहरा अटल।

फिर दिखे वो दो लोग, जिन्होंने न कुछ किया न कहा, 

बस अपनी कोमल आँखों से बहाया आंसू मेरी जीत का।


और बस तब लगा कि सारा जहां है मेरा, न कोई पराया और न कोई अनजाना,

उन दोनों की गोद में बिताया था यह बचपन महान।

दिख गई थी जीतने की राह और चाहत, बाकी था तो बस वक़्त की रौनक,

फिर जुटाई हिम्मत और कर दिखाया जिसकी बरसों से तपस्या की थी मैंने।


अपने माता-पिता की खुशी जो थी, शायद खुद में उसकी कमी थी,

पर उन्हें देखकर मानो सब कुछ धुंधला हो गया उस पल।

जीवन जीना तो खुद में मत जीना इस बात का विश्वास करो,

जियो तो बस उनके चेहरे पर आने वाली उस हँसी के लिए जियो जिससे सब कुछ मुमकिन होता है।


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