मुंबई, बस एक शहर!
मुंबई, बस एक शहर!
बढ़ती ख्वाहिशों के साथ
एक सिमटता शहर,
अधूरे सपनों के साथ
एक जुड़ती डगर
मुंबई, बस एक शहर !
सुबह के सपने जब भीड़ में
खो जाते हैं,
स्क्वायर फीट के घरों में
दम तोड़ जाते हैं,
शाम के धुंधलके में उन्ही सपनों को
ढो कर हम घर आते हैं
इस इंतज़ार में-
कि है अभी एक और पहर
मुंबई, बस एक शहर !
गगनचुम्बी इमारतें जब भी
बौने होने का दंश दे जाती हैं
तब,
लोकल में रखे हर बैग में आतंक ढूँढ़ते
कुछ मज़बूत इरादे
हमारा हौसला बढ़ाते हैं
और, बारिश की बूँदें यहाँ
काट जाती हैं सारे ज़हर
मुंबई, बस एक शहर !
यहाँ समंदर के किनारों पे
केवल कहानियाँ जन्म लेती हैं
पर इतिहास कभी नहीं बनते
और, शून्य की तरफ भागते ये पैर
कभी नहीं थमते
समझने की कोशिश में हूँ कि-
अकाल है समय का
या आने वाला है
प्रकृति का कोई कहर
मुंबई, बस एक शहर !
