देखते रहे
देखते रहे
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कभी कुर्बत कभी हिज्र देखते रहे
हम एकटक बस तुझे देखते रहे
कफ्फारा कर लिया बिना किसी गुनाह के
हम ऐसे जाहिल की फिर भी तुझसे उम्मीद ए नजर देखते रहे
तेरी बांहों के आगोश में किसी गैर को देखते रहे
जैसे मुहाजिर अपने उजड़े शहर को देखते रहे
बाग में गए देखने को जहां हम साथ चलते थे
तेरा नाम किसी और के साथ लिखा शजर देखते रहे
क्या करते, वफा के मरते जज्बात देखते रहे
जैसे कच्ची छत के मालिक बरसात देखते रहे
लौटा दी तेरी निशानियाँ बाइज्जत तेरे पते पर
सुकून से बीत जाए ये रात बस यही इंतजार हर रात देखते रहे