हाँ मैं स्त्री हूँ
हाँ मैं स्त्री हूँ
हाँ मैं स्त्री हूँ
स्त्री की तरह ही
श्रृंगार भी करती हूँ
कानों में झुमके
और पैरों में पायल भी
पहनती हूँ
भले ही किसी को पसन्द न हो
अपने मन का करती हूँ
हाँ मैं स्त्री हूँ
नारी शुलभ चैष्टाओं से परिपुर्ण
होकर भी लजाती नहीं
तुम्हारे उपहास करने पर
जीती हूँ खुद के लिये अब ।
हाँ मैं स्त्री हूँ
सीता नहीं
जिसे राम की अग्नि
परिक्षा देनी है
मैं स्त्री हूँ
अब मन के राम को
जीती हूँ खुद में ।
हाँ मैं रोती हूँ
अक्सर
बन्द कमरों में
सबसे छुपकर
नहीं दिखाती
अपने आंसू सभी को
तभी तो
मजबूत कहलाती हूँ
हाँ मैं स्त्री हूँ
हाँ मैं स्त्री हूँ
कोमलता में लिपटी
कभी कभी मगर
समय आने पर पत्थर भी
बन जाती हूँ।
