STORYMIRROR

Alpana Harsh

Abstract

3  

Alpana Harsh

Abstract

हाँ मैं स्त्री हूँ

हाँ मैं स्त्री हूँ

1 min
265

हाँ मैं स्त्री हूँ 

 स्त्री की तरह ही 

श्रृंगार भी करती हूँ 

कानों में झुमके 

और पैरों में पायल भी

 पहनती हूँ 

भले ही किसी को पसन्द न हो 

अपने मन का करती हूँ 


हाँ मैं स्त्री हूँ 

नारी शुलभ चैष्टाओं से परिपुर्ण

होकर भी लजाती नहीं

तुम्हारे उपहास करने पर

जीती हूँ खुद के लिये अब ।


हाँ मैं स्त्री हूँ 

सीता नहीं 

जिसे राम की अग्नि

 परिक्षा देनी है 

मैं स्त्री हूँ 

अब मन के राम को 

जीती हूँ खुद में ।


हाँ मैं रोती हूँ 

अक्सर 

बन्द कमरों में

सबसे छुपकर

नहीं दिखाती 

अपने आंसू सभी को

तभी तो 

मजबूत कहलाती हूँ 

हाँ मैं स्त्री हूँ 


हाँ मैं स्त्री हूँ 

कोमलता में लिपटी 

कभी कभी मगर

समय आने पर पत्थर भी

बन जाती हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract