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Alpana Harsh

Drama

3  

Alpana Harsh

Drama

एक टुकड़ा धूप

एक टुकड़ा धूप

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रचनाकार सखी प्रतियोगिता -3


एक अदद एक टुकड़ा

धूप की तलाश में रहती हूँ

आजकल


कहने को रोशनी छन के तो आती है

बरामदे में लगे काले काँच के भीतर से


छन के मगर

काले काँच सी काली छाया सी

एक टुकड़ा धूप


तन को छूकर भी

मन को नहीं छूती


कुछ अहसास रोशनदान से

लुक छिप कर देते हैं

दस्तक मगर


सिले सिले से है बिना धूप के

सुनो हटवा दो ना ये काँच मन से


ताकि महसूस कर पाऊँ

जिन्दगी में


फिर से ताजी सी

एक टुकडा़ धूप।।


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