पुरुष के आँसू
पुरुष के आँसू
ऐसा नही कि पुरुष
दुखों से व्यथित होते नहीं है।
मगर हाँ प्रतिकूल परिस्थितियों
में भी वो धैर्य खोते नहीं है।।
ऐसा नही कि उनके हृदय में
करूणा का सागर नहीं मचलता।
ये अलग बात है, कि आँखों से
अश्कों का दरिया नहीं उमड़ता।।
दुख की घड़ी में उनके अश्क भी
बरसने के लिए बेताब होते हैं।
मगर उनके आत्मबल के
समक्ष नाकामयाब होते हैं।।
पुरुष कठोर नहीं होते बस
कठोरता का आवरण ओढ़ लेते हैं।
अपना गम छिपाकर परिजनों को
संबल और सुरक्षाकवच देते हैं।।
दुख के क्षणों में वो भी
अपनों का साथ चाहते हैं।
सांत्वना और आलंबन दे उन्हें
कोई ऐसा हाथ चाहते हैं।।