लोक व्यवहार नेग रिवाज
लोक व्यवहार नेग रिवाज
भावशून्य इस जग में
भावों का कोई भाव नहीं है।
मैं इतना अधिक प्रबल हुआ
रिश्तों का कोई चाव नहीं है।।
बेगानों की क्या बात करे
जब अपनो की परवाह नहीं है।
एकल परिवारों में भी अब
होता सुख से निर्वाह नहीं है।।
नफरत के झुलसते मरूस्थल में
प्रेम की शीतल छाँव नहीं है।
जहाँ चैन की बंशी बजती थी
ऐसे सहज सरल गाँव नहीं है।।
जीवन को सहज बनाने के साधन है
सुलभ मगर जीने का उत्साह नहीं है।
ओरों के दोष देखने मे इतने अभ्यस्त हुए
अधरों पर आती वाह नहीं ।