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पत्र

पत्र

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पत्र जो लिखा मगर

भेजा नही तुम्हें कभी।

पुरानी डायरी में

सहेजा हुआ मिला अभी।


पत्र के साथ ही यादों

की पिटारी खुल गई।

मीठे अहसासों की महक

फ़िजा में घुल गई।


अनकहे अहसासों को

शब्दों में पिरोया था जतन से।

आज भी कहाँ मिटा पाई

उन अहसासों को मन से।


पत्र के साथ जी रही हूँ

उन क्षणों को आज फिर।

बता नहीं सकती तुम्हें इसलिए

रख रही हूँ सहेज कर ये राज फिर।


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