मेघ
मेघ
देखो मेघ नहीं पर्वत नभ छाये।
विविध रूप बन मन को भाये।।
कोई मरुभूमि-सा भेष बनाये।
कोई दानव-सा केश बिखराये।।
विशाल शशक व लघु शेर-सा।
उजले कपास के महा ढेर-सा।।
वारिधि सम वारिद की संसृति।
खो जाती जिसमें मानव की स्मृति।।
एक दूसरे से जब वे लड़ते।
कोई किसी से कम नहीं पड़ते।।
दामिनी की तलवार बनाकर।
वे चमकाते नभ में भांजकर।।
रुई सरिस मेघों की काया।
घूम पवन संग धूम मचाया।।
काली कजरारी के वक्षस्थल पर।
इंद्रधनुष का हार डाल कर।।
कहता मुझको वरण ले प्यारी।
ख्वाबों की मोहक फुलवारी।।
बादल संग बदली है रहती।
बिन बादल बारिश ना करती।।
वारिद बिनु वारि कहां से पाएं।
आज यही संकल्प दुहराएं।।
अंकुश लगेगा जो वन कर्त्तन।
आच्छादित होगा मेघों से गगन।।