देखो मेघ नहीं पर्वत नभ छाये। विविध रूप बन मन को भाये! देखो मेघ नहीं पर्वत नभ छाये। विविध रूप बन मन को भाये!
बढ़ रहा रात्रि का अंधकार सूझता नहीं है जय का द्वार बढ़ रहा रात्रि का अंधकार सूझता नहीं है जय का द्वार