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प्रभात मिश्र

Abstract Fantasy Thriller

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प्रभात मिश्र

Abstract Fantasy Thriller

निशा

निशा

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फैल रहा तिमिर का साम्राज्य

दिनकर का ज्यों ही मिटा राज्य

हैं बिखरा यों तारक समूह

जैसे विदीर्ण कोई सैन्य व्यूह


आशा का दीप जलाने को

जग में प्रकाश फैलाने को

है खड़ा अकेला एक वीर

चंद्रमा रश्मि का ले तूणीर

किंचित ना भय खाता है

अरिदल को मार भगाता है


सेनप से पाकर समोत्साह

जागे भट तारक करके वाह

तम राशि काटते हैं ऐसे

कंदमूल काटते हो जैसे


विचलित होता निज देख सैन्य

सेनप वारिद को हुआ दैन्य

हो कुपित प्रचंड मदमाता हैं

शशि के ऊपर चढ़ आता हैं


हैं घिरा खड़ा राकेश वहाँ

क्षत्रप मेघों के व्यूह जहाँ

तेजोमय बाण चलाता है

तमपुंज काटता जाता हैं


हैं घटाटोप सेना अरि की

थम गयी गति तारक दल की

हैं शेष नहीं आशा जय की 

क्षत्रिय का धर्म निभाता हैं 


बढ़ रहा रात्रि का अंधकार

सूझता नहीं है जय का द्वार

क्योंकर विजय की आस लिए

किस पर इतना विश्वास लिए

हैं जूझ रहा राकेश यहाँ 

कुछ बचीखुची सी साँस लिए


पर सत्य जगत में लाने को

नूतन प्रभात फैलाने को

परिणाम छोड़ लड़ता शशि है

अग जग को सुखी बनाने को


हैं दो पहर की निशा और

हर तरफ छिड़ा हैं युद्ध घोर

निज दल को विजय दिलाने को

लड़ते हैं योद्धा उभय ओर 



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