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प्रभात मिश्र

Tragedy

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प्रभात मिश्र

Tragedy

कौन जलाये दीप

कौन जलाये दीप

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कौन जलाये दीप

पूर्वाग्रह की, मन पर छायी

कालिमा असीम अमीत

कौन जलाये दीप

लोभ नयन पर, फैला पसरा

किसे दिखेगी प्रीत

कौन जलाये दीप

छल प्रपंच को, मिल जाती हैं

सहज ही जग में जीत

कौन जलाये दीप

सामर्थ्य पर मरती दुनिया

अद्भुत जग की रीत

कौन जलाये दीप

चाटुकारों की पूछ बड़ी हैं

सत्य न पावें भीख

कौन जलाये दीप

जैसा सबका चाल चलन हैं

अपनी वो ही रीत

कौन जलाये दीप।



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