गफ़लत
गफ़लत
बस किरदार निभाना हैगफ़लत में ज़माना है
इक वक़्त मुकर्रर है
जो सबको बिताना है
नाउम्मीदी से बोझल, ये
वाइज की बातें हैं
वक़्त का दरिया है
बस बहते ही जाना है
ना कोई यहाँ अपना
ना कोई बेग़ाना है
ये वक़्त ही जिसका है
बस उसका ज़माना है
ना साथ कोई आया
ना संग कोई जाना
फिर हिज्र की बातों का
कैसा ये तराना हैं
रहा खूब सफर अपना
रुह तक न कोई पहुचा
जिस-जिस ने हमे जाना
बस बाहर से ही जाना है
