भय
भय
मृत्यु शैय्या पर, अकेले होने का भय जानते हो ?
छीः! तुम मानव मन की
गहराई को क्या ही जानते हो ?
वो दिखता स्वप्न में
जो हो कभी सकता नही
अवचेतन में दबे कुचले
भय को क्या पहचानते हो ?
दिख ही जाते राक्षस
वो कल्पनाओं के कही
तुम वो शक्ति सोच की
लेकिन कहाँ तक मानते हो ?
मृत्यु शैय्या पर, अकेले
होने का भय जानते हो ?
समझ सकते हो कहाँ तक
अवसाद को, उन्माद को
पा कर खो देने की विवशता
तुम, अभी क्या जानते हो ?
सत्य ही सब कुछ सुलभ
सबको नही निश्चय मिला
हाथ से फिसली, विजय का
स्वाद भी क्या जानते हो ?
छी: ! तुम मानव मन की
गहराई को क्या ही जानते हो ?
सत्य तुमने भी चखे है
व्यंग्य, के तीखे जहर
परंतु, उपेक्षा के, क्या तुम
दंश भी पहचानते हो ?
मृत्यु शैय्या पर, अकेले
होने का भय जानते हो ?
ठीक है होनहार को, मंजूर
जो, होगा वही
खिसकते हुये आधार पर
फिर क्यों भला भय मानते हो ?
छीः ! तुम मानव मन की
गहराई को क्या ही जानते हो ?
सत्य है, सब ही बड़ा
बनना और दिखना चाहते हैं
दूसरे पर चढ़े को
पर, कद, कहाँ ही मानते हैं ?
मुझको यूँ नीचे गिरा कर
खुद, को, क्यों ऊँचा जानते हो ?
मृत्यु शैय्या पर, अकेले
होने का भय जानते हो ?
छी ः ! तुम मानव मन की
गहराई को क्या ही जानते हो ?
