फिर निकला है चाँद पुराना ...
फिर निकला है चाँद पुराना ...
फिर निकला है चाँद पुराना
नए कल कि ख़बर लेकर...
तो आज अटारी पर बैठे हैं
कुछ पन्नें और एक कलम लेकर
ज़माने बाद छंटी है बदरी
चहकते परिन्दे आये हो जैसे
रौशन भरा एक सहर लेकर
बह रही ये नम हवा
तेरे स्पर्श कि महक लेकर
फिर निकला है चाँद पुराना
नए कल कि ख़बर लेकर...
तेरे लौटने कि आस लिए
बंज़र पड़ी निग़ाहों में
समन्दर की एक लहर लेकर
क़रार के बेमिसाल किस्से
और अधूरे से कुछ जख़्म लेकर
डूबे क
ुछ यूं
कि होठों को लगाने बैठे
एक प्याले में यादों भरा ज़हर लेकर
फिर निकला है चाँद पुराना
नए कल कि ख़बर लेकर...
ये खिलती रातरानी आई है
तेरी मुस्कुराहट का कहर लेकर
किताबों में दबे यूं महकते ये गुलाब
सौंधी खुशबू में सने
पहली बारिश की बरख लेकर
बेलों से टपकते आँसू देख
छिप रहा है चाँद, पत्तों में कहीं
फिर तुझसे मिलने कि चमक देकर
फिर निकला है चाँद पुराना
नए कल कि ख़बर लेकर...