कभी दिल करे
कभी दिल करे
कभी दिल करे तो उन पुरानी
गलियों से फ़िर गुज़र जाना
कभी ख़्याल आए तो लौट कर आना
कुछ ख़ास नहीं बदला है यहाँ।
तेरी ओर से आते रास्ते ठीक वहीं मिलते हैं
दौर-की-तरफ़ के वो फूल भी रोज़ खिलते हैं
बस नवाह बेरंग तो कुछ फीका है यहाँ
कभी ख़्याल आए तो लौट कर आना
कुछ ख़ास नहीं बदला है यहाँ।
आज भी एक सख्श बालिश बीगो जाता है
इश्क़ में मजनू हुए, कुछ नज़्म गुनगुनाता है
बस गेसुओं से फ़िसलता
गुलाबी रंग न दिखता है यहाँ।
कभी ख़्याल आए तो लौट कर आना
कुछ ख़ास नहीं बदला है यहाँ
सर्द सा इक दर्द लिए,
चाँद दरीचा खटखटाता है।
ख़ामोश सा कुछ वक़्त रोज़ पहलू में बिताता है
बत्तर से काग़ज़ का वो ख़त रोज़ भीगता है यहाँ
कभी ख़्याल आए तो लौट कर आना
कुछ ख़ास नहीं बदला है यहाँ।