भूख से, गरीबी से, मजबूरी से, लड़ते लड़ते बन जाती है। भूख से, गरीबी से, मजबूरी से, लड़ते लड़ते बन जाती है।
जब देश के बच्चे-बच्चे को , इस देश से प्यार नहीं होगा। जब देश के बच्चे-बच्चे को , इस देश से प्यार नहीं होगा।
अव्यवस्थित सा दिख रहा हर तंत्र है, क्या सचमुच हो गए हम स्वतंत्र हैं ? अव्यवस्थित सा दिख रहा हर तंत्र है, क्या सचमुच हो गए हम स्वतंत्र हैं ?
क्यों वंचित रह गया उन सपनों से मेरे सपनों का सफर कुछ ऐसा था ! क्यों वंचित रह गया उन सपनों से मेरे सपनों का सफर कुछ ऐसा था !
हँस रहा है बेरोजगारी नाच रही है गरीबी साथ दे रहे हैं इनके देश की अन्य समस्याएं और देश रो रहा है ... हँस रहा है बेरोजगारी नाच रही है गरीबी साथ दे रहे हैं इनके देश की अन्य समस्याए...