देश की व्यथा
देश की व्यथा
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आज पैर जमा रही है
अपने स्तर से सबकों
प्रभावित कर रही है
आज हर शख्स
दिखावटी हँसी हस रहा हैं
वास्तविकता को छिपाकर
अंदर ही जूझ रहा हैं
बेरोजगारी, गरीबी और
अशिक्षा का राज
देश में चल रहा हैं
शासन-प्रशासन और
बुद्धिजीवी बेबस बने हुए हैं
हर कोई एक-दूसरें को
दोषी ठहरा रहा हैं
सब अपने स्तर पर
इमानदार बन रहे हैं
हँस रहा है बेरोजगारी
नाच रही है गरीबी
साथ दे रहे हैं इनके
देश की अन्य समस्याएं
और देश रो रहा है
देखकर अपनी व्यथाएँ
