टीस
टीस
कभी नहीं सोचा था पर दुख मन में उग आते हैं,
जब भीतर कुछ चटका और दर्द की एक तेज लहर उठी तब महसूस हुआ
पत्थरों सी दुआ और हवा सा सुकून दोनों ही नाकाफी है
नाकाफी है ये उम्मीद भी कि जिस मौसम में मेंहदी के फूल झरते हैं
उस मौसम में उसकी पत्तियाँ सिल पर पीसकर कोई
मेरी हथेलियों के ठीक बीचों बीच चांद उतार देगा
मेरे माथे को नेह से भर देगा ,
ऊन पर कारीगरी से जिसने हर वक्त मुझे शहजादियों सा बनाये रखा
मुझे निहारते जिसकी आंखें कभी नहीं थकीं
मेरी कच्ची कोशिशों को भी जिसने हमेशा कमाल कहा
जिसने मुझसे कभी सवाल नहीं किये
अपनी विदा को लेकर एक प्रश्नवाचक चिन
्ह सी अब वो हर वक्त मेरे सीने में चुभती है
मेरे दर्द को खुरचती है,
जिसका होना बचपने की आश्वस्ति थी
जिसका होना हर तकलीफ में शक्ति
जिसका होना दुलार और जिद्द का यकीन था
जिसका होना मेरे हर हक की तस्कीन
और जिसका होना सर्दियों की मीठी धूप का होना था
या गर्मियों की शीतल बयार का
अब उसका न होना ठीक इसके उलट होने की मजबूरी भी है
जिम्मेदारी भी,
अलविदा कभी कहा नहीं जा सकता
ये शब्द कंटीला होता है
पर बिना कहे भी ये अपना होना जता देता है
मन को टूटना सिखा देता है,
इसके होने को खारिज किया जाना चाहिए ।