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अर्चना राज चौबे

Romance

4.2  

अर्चना राज चौबे

Romance

प्रेम

प्रेम

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433


बेहद ठंडा सा कुछ सतह के नीचे से निकला 

छू गया भर गया पोर-पोर में ,


ज़मीन अचकचा उठी 

आँखें फैलने लगीं नमी की कौतुक से 

उसकी जगह ये कौन आ गया है 

छेक लिया है सारा का सारा अन्तःस्थल 

पसर गया है लापरवाही से ,


सांझ ढलते ही ज़वाब भी मिला 

जब आइना चटक गया सुख के अतिरेक से 

फूल बहक उठे 

रो पड़ी तकलीफ 

मन हंस पडा ,


ये आग है भगोड़ी 

छुपती फिरती थी ज्वालामुखियों से अनंत काल से 

अब प्रेम ने शीतल कर दिया है 

कि अब जो ये जलती भी है रगों में तो बड़ी ठंडी-ठंडी 

शरद के शहद जैसी,


आत्मा नहा उठी है अनायास ही प्रेम में ,,,प्रेम के स्पर्श में !!


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