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अर्चना राज चौबे

Inspirational

4.2  

अर्चना राज चौबे

Inspirational

रीढ़

रीढ़

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समंदर की मछलियाँ खुश नहीं रहीं 

चपल भी नहीं 

वहां मछलियों के गिल्स तेज़ी से फडकने लगे हैं 

आप कह सकते हैं कि उनका रक्तचाप बढा हुआ है ,


मछलियाँ अपनी नाराजगी ज़ाहिर करती हैं 

वे तैरना छोड़कर खुद को इस कदर जोड़ती हैं

कि वे एक आइलैंड हो सकें 

तब उन्हें समन्दर में नहीं 

बल्कि समन्दर को उनके चारों तरफ तैरना होगा 

वे स्वाभिमान चाहती हैं न कि आश्रित होना 

साँसों के लिए हवाओं से उनका करार हो गया है ,


अपनी रंग-बिरंगी सुन्दरता भी कुर्बान कर सकती हैं वे 

अपनी कमनीयता और सराहे जाने का सुख भी 

कि खुद को मिटटी में बदल सकती हैं वे 

जरूरत पडी तो पत्थर में भी 

वे योद्धा होना चाहती हैं न कि बेचारी ,


अपने दांतों को सालों से तैयार कर रही हैं कि जाल काट सकें 

हर किस्म का जाल चाहे वो कितना भी सुंदर या मजबूत क्यों न हो 

अपने एक जोड़ी पंखों को मजबूत कर रही हैं कि वक्त आने पर उड़ सकें 

या एक साथ मिलकर आक्रमण कर सकें ,


समन्दर का नमक अब उन्हें जलाने लगा है 

शैवालों के बीच जाकर वे अब उन्हें शीतल या शांत नहीं करना चाहतीं 

उसी नमक से अब वो समन्दरों को भर देना चाहती हैं 

सूद समेत वापस लौटाना चाहती हैं 

जानती हैं कि उनकी प्रशस्ति यहीं से आकार लेगी ,


उनका विरोध यूँ ही नहीं है 

सालों-साल की पीड़ा ने उन्हें धीरे-धीरे सचेत किया 

कि वे वास्तव में रीढ़ विहीन नहीं हैं।


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