बगिया के टुकड़े
बगिया के टुकड़े
ईश्वर ने एक बगिया बनाई
दिया उसे संसार का रूप
बगिया फूलों से महकाई
पाया हर फूल ने नया स्वरुप
कोई फूल था हिन्दू ,कोई था मुस्लिम
कोई था सिख ,तो कोई फूल ईसाई
उनमें थी मोहब्बत और सच्चाई
लेकिन नफरत और बेईमानी को था इनसे बैर
बोले इनको सिखलाओ के हर कोई है गैर
फिर वक्त ने पासा पलटा ,फूलों में आया मज़हब का काँटा
काँटो ने किया दिलों पर वार, एकता हुई तार तार
फूलों ने किया माली का अपमान
रिश्तों को भी दिया न कोई सम्मान
ईश्वर को है इस बात की चिंता
की कहीं उठे न मेरी बगिया की चिता
मज़हब को किया है हर फूल ने बदनाम
दिया है दंगों को धर्म का नाम
बस यही सवाल पूछता है ईश्वर का विवेक
अगर घर सबका एक, माली सबका एक
तो क्यों हुए है इस बगिया के टुकड़े अनेक