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neha goswami

Inspirational

1.0  

neha goswami

Inspirational

ए ज़िंदगी तुझे संवार लूँ

ए ज़िंदगी तुझे संवार लूँ

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ए ज़िंदगी तुझे संवार लूँ

तेरे नाज़ नखरे हँस के उठा लूँ

ए ज़िंदगी तुझे संवार लूँ


कभी डरी डरी सी,सहमी हुई लगती थी तू

किसी कश्मकश में उलझी थी तू

एक अनजाने से सवाल जैसी

रोज़ नयी चुनौती थी तू


नहीं जानती थी कि तेरा वजूद क्या है

कैसे तेरा विश्वास जीतना है

कैसे तुझे प्यार जताना है


रोज़ ठानती थी तुझे हराने की

भटकती रहती थी यहाँ वहाँ

चाह थी तुझसे खुशी पाने की


फिर तू भी कहाँ हार मानती है

पहले जी भर के रुलाती है

फिर खुल के हँसती है


पर दिल मेरा भी ज़िद्दी था

तेरे इस रहस्य को जानने के लिए बेताब था


तेरे इस खेल को जितना चाहती थी

जी भर कर तुझे जीना चाहती थी

हर पल की खुशी महसूस करना चाहती थी


निकल पड़ी थी तेरी तलाश में

जो पूरी हुई थी तुझ पर लिखी किताबों में

तुझे समझा मन से किये हुए ध्यान में


समझा तेरे वजूद को

तेरे बहते हुए रूप को


तुझे जीना भी एक कला है

तू मदमस्त बहती धरा है

हर क्षण में तू समायी है


ढूंढते है तुझे हमेशा बाहर हम

पर तू तो हमारे अंदर ही समायी है

अरे, तू तो मेरी ही परछाई है


नादान दिल तुझसे लड़ता रहा

रूठी हुई समझ के तुझे मनाता रहा

अपने कल को सुधारने की धुन में, आज को गंवाता रहा


तू चुनौतियों से लड़ना हमें सिखा गयी

गिराते , सँभालते हमें चलना सिखा गयी

पंख फैला के फलक को छूना सिखा गयी


जाने अनजाने में हमें जीना ही सिखा गयी

मुझे मेरे आज में होना सीखा गयी

खुद से मुझे प्यार करना सीखा गयी


तभी तो दिल अब झूमते हुए कहता है

ए ज़िंदगी तुझे संवार लूँ

तेरे नाज़ नखरे हँस के उठा लूँ

ए ज़िंदगी तुझे संवार लूँ


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