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कुदरत का आँचल

कुदरत का आँचल

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कलरव करती बरखा ने चंचल फूलों को सींचा है

मंद हवा के झोंकों ने चितवन नज़ारा खींचा है

रंग सुनहरा निखरा है धरती की प्याली का

ऐ कुदरत तेरा शुक्रिया जो फैलाया आँचल हरियाली का।


कोमल पत्तों ने लहराकर किया स्वागत सावन का

कलियों ने खुशबू फैलाकर बनाया मौसम मनभावन सा

गरजते मेघों ने आकर किया छिड़काव वारी का

ऐ कुदरत तेरा शुक्रिया जो फैलाया आँचल हरियाली का।


गुनगुनाते भँवरों ने नगमा गया सुरीला सा

इंद्रधनुषी रंगों ने आकाश बनाया रंगीला सा

फ़र्ज़ हम सब पर है इन नज़ारों की रखवाली का

ऐ कुदरत तेरा शुक्रिया जो फैलाया आँचल हरियाली का।


मत करो खिलवाड़ हमसे बचाओ हमें बुरी नज़र से

क्या बिगाड़ा हमने तुम्हारा पूछते हैं यह हर रहगुज़र से

ऐसा न हो यह नज़ारा लगे एक दिन ख़याली सा

फिर आँखें भरकर ढूंढना पड़ेगा थोड़ा सा आँचल हरयाली का।


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