नादान सा बचपन
नादान सा बचपन
दिल आज भी ढूंढता है उन पुरानी यादों को
वो फुर्सत के लम्हें वो प्यारी बातों को
वो दोस्ती से महकी मासूम शरारतों को
कैसे भूल सकते है उन अनमोल वादों को
वो सावन की पहली बारिश सा बचपन
वो ओस की साफ़ बूँदों सा बचपन
हर पल यहाँ गहराने लगा समय का कोहरा
न जाने कहाँ छिप गया नादान सा बचपन
न फ़िक्र न कोई चिंता सताती थी
किसी रिश्ते को समझने की न ज़िद्द सताती थी
तकलीफ़ से अनजान हर कली खिलखिलाती थी
हर पल चेहरे पर एक सच्ची मुस्कान रहती थी
चेहरा हर एहसास का दर्पण होता था
रोज़ एक नयी उमंग एक सपना होता था
धुएँ सी उड़ती थी हर फ़िक्र हमारी
फलक को छूने की होती थी कोशिश हमारी
क्यूँ इतना बेगाना सा बन जाता है
हर रिश्ता अंजाना सा बन जाता है
न जाने कहाँ खो जाता है वो मासूम सा बचपन
क्यूँ हर चेहरे पर एक नया चेहरा लग जाता है