विदा
विदा
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इस समय तुम जा रही थीं
सदा को
और हम ठहरे हुये थे
आंसुओं को रेत कर,
वक्त की सुई पकड़
कसकर खड़े थे
मन ही मन जिद पर अड़े थे
हम लड़े थे ,
फिर भी तुमने तय किया जाना यहाँ से
ठीक है फिर,
सोख्ता कागज सी हो हर रात मेरी
और गुलाबों सा सुसज्जित दिन तुम्हारा।