दुश्मनों की मुझको जरूरत नहीं।
दुश्मनों की मुझको जरूरत नहीं।
दोस्तों ने मेरे मुझको सिखाया तो बहुत
किअब दुश्मनों की मुझको जरूरत नहीं।
दे दिया है हमने जिसको कुछ भी सही
फिर से पाने की उसको मुझे हसरत नहीं।।1।।
तन्हा करके वह सफर में मुझको यहाँ
साथ दूसरों के जानें कब से चलने लगे।
मोहब्बत मेरी थी उनसे रूह से रूह की
मेरी जानिब से उनसे कोई अदावत नही।।2।।
ऐसा नहीं है कि मुझको तुमसे ज़िन्दगी
कोई भी शिकवा और शिकायत नहीं।
नाशाद हूँ मैं अपने दिल बहुत ही मगर
गिला करना किसी से अब आदत नही।।3।।
दिल दुखाने की हमेशा तेरी कोशिश रही
इसके बिन तुमको कुछ भी आता नहीं।
गर सीरत नहीं किसी में तो कुछ भी नहीं
सूरत से तो होता कोई भी खूबसूरत नहीं।।4।।
हमने भी देखे है दुनिया में पैसे वाले बहुत
पर खुश हो सभी भी ये तो मुमकिन नहीं।
ऐसी कमाई मेरे मौला ना दे मुझको कभी
कि जिसमें तेरी हो कोई भी बरकत नहीं।।5।।
माना ऐ ज़िन्दगी मैं परेशाँ हूँ तुझसे बहुत
पर अकीदा खुदा पर से मेरा उठा तो नहीं
माफ करना तो आदत सी हो गयी है मेरी।
इससे बढ़कर मेरी कोई भी शराफत नही।।6।।
मुफलिसी में किसी का दिल दुखाना नहीं
ये बात उस रब ने कही है सब से मैंने नहीं।
आजमाइश ना करना नामाजों की कभी
ऐसी खुदा को पसंद कोई भी इबादत नही।।7।।