गरीबी
गरीबी
समाज में खत्म हो रहे हैं।
गरीब दिन-ब-दिन पर,
खत्म नहीं हो रहा है अगर कुछ तो,
वह है बस गरीबी।
वह है बस गरीबी।
सड़कों पर भूख से बिलबिलाते हुए,
घूम रहे हैं छोटे-छोटे बच्चे।
पर फर्क नहीं पड़ रहा।
किसी को भी, किसी को भी।
क्योंकि भूल बैठे हैं बात यह सभी कि,
इंसानियत है जीवन में सबसे ज़रूरी।
इंसानियत है जीवन में सबसे ज़रूरी।
गरीबों के लिए दिन-ब-दिन,
मुसीबत बनती जाती है यह गरीबी।
दूसरी ओर अमीरों को प्यारी होती है बस,
अपनी धन संपदा और अमीरी।
धन ही है उनके लिए बस,
उनका मित्र, उनका सबसे करीबी।
ना जाने क्यों नहीं समझते लोग कि,
देश के बच्चे भूखे सोएँ।
इससे बड़ी नहीं देश के लिए,
कोई बदनसीबी, कोई बदनसीबी।
चाहें अगर सभी लोग दिल से थोड़ा-सा भी तो,
मिटा सकते हैं शायद,
देश से थोड़ी-सी तो गरीबी।
देश से थोड़ी-सी तो गरीबी।
ना जाने कैसे-कैसे,
खेल खेलती है यह गरीबी??....
अभावों और जरूरतों की खाई को,
हर घर में गहराती जाती है यह गरीबी।
फिर कलह-क्लेश फैला घर में,
निराशा लाती है यह गरीबी।
कभी-कभी लोगों की,
आत्महत्या तक की सीढ़ी बन जाती है।
यह गरीबी।
यह गरीबी।
गरीबी पर इसके आगे,
और कुछ भी लिख पाने के लिए।
मेरे पास है शब्दों की गरीबी।
नहीं मेरे पास ज्ञान और
शब्दों की इतनी अमीरी।
जिनमें बता सकूँ और ज़्यादा मैं कि,
किस कदर अभिशाप है समाज में यह गरीबी??....
किस कदर अभिशाप है समाज में यह गरीबी??....