बुर्जुगों की जायदाद से।
बुर्जुगों की जायदाद से।
देखो बुजुर्गों की जायदाद से
आज हम बेदखल हो गए हैं।
ऐसे लगे जैसे हमारे ही घर में
हम अपनों से कत्ल हो गए हैं ।।1।।
कोई सीरत ही ना रही अब हममें
हम बे सीरत-ए-शकल हो गए हैं।
अब क्या कुछ सोचे इस मौजूं पे
हम अक्ल से बे अक्ल हो गए हैं ।।2।।
हर्फ क्या बदले वसीयत के लोगों
हम तुम्हारे लिए बेअसर हो गए है।
आए थे हमारे हिस्से में जो बाग
वो सारे के सारे बेशज़र हो गए हैं ।।3।।
बड़े बदकिस्मत है वो माँ-बाप भी
यूँ जिनके बच्चे बेअदब हो गए हैं।
सारे के सारे अब तो जख्म उनके
यूँ मरने के बाद बे दर्द हो गए हैं ।।3।।
क्यूँ करे वह भरोसा मेरी बात का
मेरे अहद जब बे अहद हो गए हैं।
ऐसे टूट जानें पर यूँ ही अहदों के
किये हर काम बे सबब हो गए हैं ।।4।।
जब से खतम सब ही ये रिश्ते हुये
एक दूसरे से हम बेखबर हो गए हैं।
कभी जो थे उनकी आंखों के तारे
आज सब के सब बेनजर हो गए हैं ।।5।।
एक तुम्हारे ही कारण आज से ऐसे
मेरे माँ-बाप अब बेपिसर हो गए हैं।
वैसे अच्छा ही किया मजबूर तुमने
आज डर से वह बेफि़कर हो गए हैं ।।6।।
पहचान क्या ले ली अपनों ने हमारी
अपने ही वतन में हम बेवतन हो गए।
यूँ दूर जानें मेरे माँ-बाप के ज़िन्दगी से
हम जानें कितना दिल से बेचैन हो गए ।।7।।