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Arunima Bahadur

Tragedy

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Arunima Bahadur

Tragedy

काश

काश

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जुड़ता जा रहा नव अध्याय,

जीवन के इस मोड़ में,

क्या कभी कोई खुश रहा,

स्वार्थो के जोड़ तोड़ में।

क्या था अपना,एक दिल ही तो,

प्रेमपुरित कर जो भेजा था,

सजने जा रहा तो वसुधा को,

प्रियतम को यह भरोसा था।

आ कर इस वसुधा में तूने,

प्रेम के बंधन तोड़ दिए,

उजाड़े नीड दूजो के और,

केवल घोसलों के लिए।

कब रहना इस वसुधा पर,

प्रस्थान आज तो करना है

जो भूला तू कर्तव्य अपने,

वह भी पूर्ण करना है,

झर झर बहते अश्क़ धरा के,

देख मनुज के इस रूप में,

भूल गया जो प्रेम की बाते,

अपनाने भावकूप को,

काश!कभी आंधी आये विवेक की,

और मनुज भी जाग जाए,

प्रेम के फिर मलय चले

और प्रेममय जीवन हो जाये।।


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