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Kusum Lakhera

Tragedy Others

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Kusum Lakhera

Tragedy Others

मुखौटा लगाते लोग

मुखौटा लगाते लोग

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चेहरे पे चेहरा लगाते हैं लोग ,

चेहरे को मुखौटे से छिपाते हैं लोग !

सच के ख़ौफ से बचने के लिए,

 चेहरे को झूठ से छिपाते हैं लोग !

झूठ को सच ही बताते हैं लोग ,

न जाने क्यों करते हैं लोग ये ढोंग !

न जाने क्यों लगाते हैं लोग ये रोग ..

न जाने क्यों असलियत छुपाते हैं लोग !

न जाने क्यों सच्चाई न जताते हैं लोग,

आज कल ज़िंदगी की सच्चाई है यही ,

अपने मन की बात कहाँ बता पाते हैं लोग !

दिल की गहराइयों में जो दर्द का सागर है !

उसे अश्कों से कहाँ बहाते हैं लोग ..

दिल के आईने में जो अक्स दिखता है !

उस अक्स को सामने नहीं लाते हैं लोग ,

बस औपचारिकता ही रह गई हैं जिंदगी में ,

इसी औपचारिकता को निभाते हैं लोग !

दर्द ए दिल हो या खुशियों के तराने ..

सामने किसी के कहाँ लाते हैं लोग ..

डिजिटल दुनिया के मायाजाल में खोए हुए ,

खुद को भी छलावे में पाते हैं लोग ...

रुपहली दुनिया में ख़ुद को मशरूफ़ रखते रखते ,

न जाने कितने अकेले हो जाते हैं लोग !

आसपास दोस्तों की महफ़िल में कहकहा लगाने वाले,

अकेले में अश्कों को बहाते हैं लोग!

इस रंगीली जिंदगी के रंगों में रंगे लोगों के..

चेहरे कितने बेनूर नज़र आते हैं ...

जब अपने चेहरे से मुखौटा ...हटाते हैं लोग !



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